छत्तीसगढ़ : म्यूजियम की शोभा बन चुके ढेंकी के दिन लौटे

छत्तीसगढ़ में ढेंकी के दिन फिर रहे हैं| म्यूजियम की शोभा बन चुके ढेंकी की महत्ता को  छत्तीसगढ़  की नई  पीढ़ी ने जाना और इसे  बाहर निकाल ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में जुट गया है

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दन्तेवाड़ा /रायपुर|छत्तीसगढ़ में ढेंकी के दिन फिर रहे हैं| म्यूजियम की शोभा बन चुके ढेंकी की महत्ता को  छत्तीसगढ़  की नई  पीढ़ी ने जाना और इसे  बाहर निकाल ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में जुट गया है

छत्तीसगढ़ में ढेंकी से चावल निकालने की परम्परा रही है| तब घरों में ढेंकी सुखी व संपन्नता की प्रतीक थी | बेटियों का ब्याह घर में ढेंकी देखकर और बाहर बियारा में पैरा देखकर तय किया जाता था |  म्यूजियम की शोभा बन चुके ढेंकी की महत्ता को  छत्तीसगढ़  की नई  पीढ़ी ने जाना और इसे  बाहर निकाल ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की ठानी |

ढेंकी से निकला चावल स्वाद के साथ ही पौष्टिकता से भरपूर होता है |  महानगरों में  ढेंकी चावल की अच्छी खासी मांग को  देखते दंतेवाड़ा जिले में ढेंकी से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की अभिनव पहल की गई है। ढेंकी चावल को डैनेक्स यानी दंतेवाड़ा नेक्सट के ब्रांड के साथ बाजार में उतारा जा रहा है, जो कि दन्तेवाड़ा जिले का अपना ब्राण्ड है।

छत्तीसगढ़  सरकार द्वारा ग्राम पंचायत कटेकल्याण में इस बरस ढेकी चावल निर्माण इकाई  शुरू की गई है । इसमें महिला स्व-सहायता समूहो की 15 दीदीयां काम कर रही हैं।

 

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यहाँ  ढेंकी में उपयोग किए जा रहे धान पास के ही गावों से लाए जाते है, जिससे लगभग 100 से भी अधिक महिलाएं अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित हो रही हैं। इसके अलावा 90 से भी अधिक ढेंकी बनकर तैयार हैं, जिससे और भी लोगों को रोजगार मिलेगा।

दन्तेवाड़ा में किसान खेती में जैविक खाद का उपयोग कर रहे हैं। उनके द्वारा खेतों में रासायनिक खाद एवं दवाइयों का प्रयोग नहीं करने से उत्पादित चावल पूरी तरह स्वास्थप्रद और केमिकल फ्री होते हैं।

ढेंकी चावल तैयार करने के लिए जैविक रूप से उत्पादित देशज प्रजातियों का उपयोग किया जाता है। कुटाई के बाद चावल की सफाई और पैंकिंग का कार्य भी महिलाओं को दिया गया है।

क्या है ढेंकी

छत्तीसगढ़ : म्यूजियम की शोभा बन चुके ढेंकी के दिन लौटे
ढेंकी एक पुरानी शैली की चावल निकलने का साधन है। यह कठोर लकड़ी की बनी होती है। जिसे एक ओर पैर से दबाया जाता है और दूसरी ओर लोहे की एक मूसल लगी होती है। मूसल से ओखलीनुमा लकड़ी पर भरे गए धान की कुटाई होती है। जब धान में भार के कारण बल पड़ता है तो सुनहरी भूसी चावल से अलग हो जाती है।

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