जायका शब्दों का: श्रद्धा और प्रेम में बड़ा कौन है?

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शब्द और शब्द : श्रद्धा और प्रेम में बड़ा कौन है?
 यह सवाल 12 वीं के एक छात्र का था।
एक झटके में मेरे भीतर से जो जवाब मिला वह था -प्रेम।

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प्रेम मां है तो श्रद्धा संतान
प्रेम के गर्भ से ही शद्धा का जन्म होता है।
दो उदाहरण- मां के इस प्रेम को देख उसके प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ी।
उस तपस्वी के वैराग्य, त्याग, ज्ञान को देख मन में श्रद्धा का भाव उमड़ा पड़ा।
यानि प्रेम से ही जन्मी है श्रद्धा।
जहां घृणा जन्म ले वहां श्रद्धा कहां?
आसाराम, रामपाल जैसों के कारनामे देख सुन
अब बाबाओं के प्रति श्रद्धा कहां?
श्रद्धा में प्रेम अनिवार्यत: शामिल रहता है,
प्रेम में श्रद्धा जरूरी नहीं।
प्रेम में स्वार्थ हो सकता है, श्रद्धा में नहीं। क्योंकि वह विश्वास की जन्मघूंटी लिए फिरता है।
श्रद्धा से प्राप्तकर्ता को लाभ मिलता है (आजकल हानि भी) देनेवाले को कुछ नहीं।
प्रेम गली अति सांकरी जा में दो न समाहि।
प्रेम में, मैं का अस्तित्व नहीं। आग्रहहीन होकर, अटूट विश्वास एक-दूसरे के प्रति। एकसार, एक दूसरे में समाये।
प्रेम में शारीरिक भंगिमाएं प्रतिक्रियाएं उभर जाती हैं। श्रद्धा में ऐसा नहीं होता।
कुल मिलाकर प्रेम का स्थान बड़ा है, जो जीवन को गति देता है और श्रद्धा उस गति में संतृष्टि। वैसे जब दोनों अंधे हो जाते हैं तो अंधश्रद्धा उससे भी खतरनाक।
नोट- यह विश्लेषण सामान्य ज्ञान पर आधारित है।  प्रेम का ढाई आखर पढ़ नहीं पाए सो पंडित नहीं बना पाए, असहमति का सादर स्वागत है।
डॉ निर्मल कुमार साहू 

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