यूक्रेन और भिलाई के दिल का रिश्ता

65 साल पहले हमारे भिलाई के इंजीनियर तत्कालीन सोवियत संघ गए तो वहां यूक्रेन और रूस दोनों जगह वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिला। तब भिलाई के इंजीनियरों का यूक्रेन के साथ दिल का रिश्ता भी जुड़ा था।

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वह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का शांतिकाल था और वैश्विक राजनीति में जवाहरलाल नेहरू की जबरदस्त धमक थी। ऐसे में जब 65 साल पहले हमारे भिलाई के इंजीनियर तत्कालीन सोवियत संघ गए तो वहां यूक्रेन और रूस दोनों जगह वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिला। तब भिलाई के इंजीनियरों का यूक्रेन के साथ दिल का रिश्ता भी जुड़ा था। अब परिस्थिति दूसरी है।  आज 21 वीं सदी में युद्ध के साये में जद्दोजहद कर रहा यूक्रेन है, जहां हमारे भारतीय स्टूडेंट के साथ दुर्व्यवहार की कई विचलित करने वाली खबरें आ रही हैं।

-मुहम्मद जाकिर हुसैन

हम भिलाईवालों से कोई रूसी और यूक्रेनी नागरिकों के बीच फर्क करने कहे तो शायद ही कोई कर पाए। रंग-रूप वेशभूषा और बोली-भाषा भी एक सी होने की वजह से वैसे भी इनमें फर्क करना आसान नहीं। दरअसल, हम लोग भिलाई में जिन्हें ‘रशियन’ के नाम से जानते हैं उनमें से 90 फीसदी लोग यूक्रेन मूल के ही हैं। आज भी भिलाई में जो बचे हुए ‘रशियन’ परिवार हैं, उन सभी का रिश्ता यूक्रेन से जुड़ा है।

यूक्रेन का अज्वस्ताल स्टील प्लांट, जहां भिलाई के ज्यादातर इंजीनियरों ने तकनीकी प्रशिक्षण लिया- तस्वीर 1960 की

जिन दिनों भिलाई स्टील प्रोजेक्ट अपना रूप ले रहा था, उन्हीं दिनों सुदूर यूक्रेन में तकनीकी प्रशिक्षण हासिल करने गए भिलाई के ज्यादातर नौजवानों ने वहां दिल का रिश्ता भी जोड़ लिया।

भिलाई में रह रहे वरिष्ठ पत्रकार मो. जाकिर हुसैन सोशल मिडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं| वोल्गा से शिवनाथ तक उनकी चर्चित किताब है| यूक्रेन  से  भारत  के  संबंधों पर लिखा  उनके ब्लॉग पर पोस्ट का एक हिस्सा

1956 से 1985 तक भिलाई में लगभग हर साल ऐसे कई जोड़े आते गए, जिनकी नई जिंदगी की शुरूआत यूक्रेन से हुई। भिलाई के एक युवा इंजीनियर काशीनाथ 1957 में यूक्रेन के ज्पारोशिया में प्रशिक्षण ले रहे थे। वहीं उनकी मुलाकात आना मलाया से हुई। बातें-मुलाकातें हुई और लुदमिला को काशीनाथ इतना भा गए कि उन्होंने साथ जिंदगी बिताने का फैसला कर लिया।

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1959 में भिलाई के इंजीनियर एलआर भटनागर यूक्रेन के मकेयेवका स्टील प्लांट में प्रशिक्षण ले रहे थे। वहीं उनकी मुलाकात एक युवा टेलीफोन ऑपरेटर गलीना से  हुई और दोनों ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया।

1960 में मेकेयेवका के स्टील प्लांट में प्रशिक्षण ले रहे भिलाई के युवा इंजीनियर मोती सागर मल्होत्रा का वहीं के अस्पताल में पदस्थ 21 साल की नर्स जीना पर आ गया और जब मल्होत्रा हिंदुस्तान लौटे तो उनके साथ उनकी हमसफर जीना भी थी।

1962 में यूक्रेन के ज्पारोशे में स्कूली पढ़ाई कर रही क्लेरा और भिलाई से गए युवा इंजीनियर बलराम सिंह की कहानी में भी ऐसी ही रूमानियत थी। क्लेरा और बलराम ने बाद में शादी कर ली और भिलाई में नई जिंदगी की शुरूआत की। सेल के निदेशक प्रोजेक्ट पद से रिटायर हुए बलराम सिंह तो अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन क्लेरा उम्र के 8 वें दशक में भी बेहद सक्रिय हैं और सोशल मीडिया पर रोजाना अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहती हैं।

मल्होत्रा-मजुमदार और बलराम सिंह दंपति

यूक्रेन के ज्दानोव (अब मरियोपोल) के एक आर्थोडोक्स क्रिश्चियन परिवार की बेटी लुद्मिला और भिलाई से वहां स्टील प्लांट में प्रशिक्षण लेने गए युवा इंजीनियर विश्वनाथ नागेश मजुमदार की भी नजरें मिली और प्यार हो गया। हालांकि उनकी शादी में कुछ दिक्कतें आईं लेकिन दोनों ने एक दूसरे का हाथ थाम कर 1963 में शादी के बाद भिलाई में नहीं जिंदगी की शुरूआत की।

बाद के दौर में 1985 में यूक्रेन के ज्पारोशिया में फैशन डिजाइनर लुद्मिला अरेफयेवा और भिलाई से वहां प्रशिक्षण लेने गए सुब्रत मुखर्जी ने 1985 में एक दूसरे को दिल दे दिया और शादी के बाद भिलाई में नई जिंदगी शुरू की। पेशे से मेकेनिकल इंजीनियर विवेक चतुर्वेदी 1986 में यूक्रेन के मशीन बिल्डिंग इंस्टीटॅयूट ज्पारोशिया में पढ़ रहे थे। वहीं इना लुब्रोनेंको भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की तालीम ले रही थीं। दोनों के दिल मिले और रूमानियत का एक नया रिश्ता शुरू हुआ जो आज भी हंसी-खुशी चल रहा है। (ब्लॉग bhilaise से साभार )

 

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